Tuesday 29 October 2013

गज़ल

मैं  क्यों  किसके  लिए जिन्दा हूँ 
               खुद  अपने  वज़ूद  पर  शर्मिंदा   हूँ |

खुदाया  तेरी  नेमतों  का  जवाब  नहीं ,
                मैं  तेरे  इन्साफ  पर  फ़िदा  हूँ |

तेरी  रहमतों  की  नहीं  फिक्र  मुझे, 
                 तेरी  वादाखिलाफ़ी  पर गमज़दा हूँ |

मेरा  ज़ब्त  तेरे  ज़ुल्म  से  कमतर नहीं ,
                  देख  तेरे बावजूद  आज  जिंदा  हूँ |


                                                    ____ 'उमि'
                                                    27/09/2007

गज़ल

किस  कदर  मुश्किलों  में  हम  हैं ,
तनहाई   है   और   शाम - ए - ग़म   है 

फिर  मेरे  तसव्वुर   में   तुम  हो,
फिर  तेरे  ख्यालों  में  हम  हैं 

आसमां  भी  रात  रोया  होगा,
ज़र्रे - ज़र्रे  पे  बिखरी  शबनम  है 

कुछ  तेरी  यादों  के  नश्तर  तीखे  हैं ,
और  जाम  में  शराब  भी  कम  है

______ 'उमि'
26/09/2907  

Monday 28 October 2013

चला जाऊँगा

बस इन सासों का क़र्ज़ उतार लूं ,

खुद को अपनी नज़रों में संवार लूं
  
--- चला जाऊँगा !


यही अरमान बाकी है अब दिल में मेरे ,

इक बार तेरी नज़र उतार लूँ 

--- चला जाऊँगा !


दिन भर तेरी यादों के सफे पलटता रहा,

तेरी याद में ये शब गुज़ार लूँ  

 --- चला जाऊँगा !


मैं जानता हूँ, तू अब न आएगा "उमि ",

ये बात दिल में उतार लूँ 

 --- चला जाऊँगा !

_____  "उमि "
अक्टूबर १३, २०१३  


Monday 20 August 2012

भिखारी

मैं भिखारी हूँ
भीख मांगता हूँ -
मोहब्बत की, अपनेपन की, सुकून की ,
और इस दुनिया को चलाने वाला वो ईश्वर
बड़ा दयावान है
ऐसा नही कि भीख भी न दे
देता है
पर - वह नहीं जो मैं माँगू
बल्कि वह जो ये चाहें !
जैसे - दर्द, दर्द, दर्द
मेरी हथेलियाँ दर्द से भर गई हैं
इसलिए भीख में मिले इस दर्द को 
मै रखता हूँ अपने दिल में 
क्योंकि दिल में अभी बहुत जगह खाली है 
दुनियां के लिए 
बहुत से दर्द समेट सकता हूँ अभी 
मुझे प्यार है दर्द से 
जैसे कोई पागल 
भीख में मिले 
खोटे सिक्कों से प्यार कर बैठे - 
मेरा दिल दर्द से कभी न भरेगा 
मैं कभी तृप्त न होऊंगा 
क्योंकि कहते हैं मैं भिखारी हूँ !

Monday 13 August 2012

गज़ल

न पूछ किस कदर ये आँख तरसी है 
जाने किन-किन तमन्नाओं की आज बरसी है. 

दिल की जलन को मिलती नहीं राहत
अब तो रातें भी दोपहर सी है.

गालों पर गिरे आंसू तो यूँ लगे 
तपती ज़मी पे आग बरसी है.

बड़ा पहचाना सा लगता है ये वीराना 
इसकी फिज़ां मेरे शहर सी है .